मन्त्रः— “ॐ गुरूजी ! काला भैरू, कपला केश । काना मदरा,
भगवाँ भेष । मार-मार काली-पुत्र, बारह कोस की मार । भूतां हात कलेजी, खूं हाँ गेडिया
। जाँ जाऊँ, भैरू साथ । बारह कोस की रिद्धि ल्यावो, चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो । सुत्यो
होय, तो जगाय ल्यावो । बैठ्या होय, तो उठाव ल्यावो । अनन्त केसर को थारी ल्यावो, गौराँ
पार्वती की बिछिया ल्यावो । गेले की रस्तान मोय, कुवें की पणियारी मोय । हटा बैठया
बणियाँ मोय, घर बैठी बणियाणी मोय । राजा की रजवाड़ मोय, महल बैठी राणी मोय । डकणी को,
सकणी को, भूतणी को, पलीतणी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धकमा
कूँ, अलीया को, पलीया को, चौड़ को, चौगट को, काचा को, कलवा को, भूत को, पलीत को, जिन
को, राक्षस को, बैरियाँ से बरी कर दे । नजराँ जड़ दे ताला । इता भैरव नहीं करे, तो
पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे । माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे । चल डकणी-सकणी,
चौड़ूँ मैला बाकरा । देस्यूं मद की धार, भरी सभा में । छूं ओलमो कहाँ लगाई थी बार ।
खप्पर में खा, मुसाण में लोटे । ऐसे कुण काला भैरूँ की पूजा मेटे । राजा मेटे राज से
जाय । प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय । जोगी मेटे ध्यान से जाय । शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा,
चलो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॥”
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