मंत्र- ॐ नमो भगवते रामाय महापुरुषाय नमः
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मन्त्र — “ॐ नमो काला-गोरा क्षेत्र-पाल ! वामं हाथं कान्ति, जीवन हाथ कृपाल । ॐ गन्ती सूरज थम्भ प्रातः-सायं रथभं जलतो विसार शर थम्भ । कुसी चाल, पाषान चाल, शिला चाल हो चाली, न चले तो पृथ्वी मारे को पाप चलिए । चोखा मन्त्र, ऐसा कुनी अब नार हसही ॥” जप के बाद निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए भैरव जी को नमस्कार करना चाहिए । यथा — “ह्रीं ह्रों नमः ।’ इस प्रकार साधना करने से भैरव जी सिद्ध होते हैं और साधक की सभी अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं ।
मन्त्रः— “ॐ नमो, आदेश गुरू को । काला भेरू-कपिल जटा । भेरू खेले चौराह-चौहट्टा । मद्य-मांस को भोजन करे । जाग जाग से काला भेरू ! मात कालिका के पूत ! साथे जोगी जङ्गम और अवधूत । मेरा वैरी ………. (अमुक) तेरा भक । काट कलेजा, हिया चक्ख । भेजी का भजकड़ा कर । पाँसला का दाँतन कर । लोहू का तू कुल्ला कर । मेरे वैरी ………… (अमुक) को मार । मार-मार तू भसम कर डार । वाह वाह रे काला भेरू ! काम करो बेधड़क-भरपूर । जो तू मेरे वैरी दुश्मन (अमुक) को नहीं मारे, तो मात कालिका का पिया दूध हराम करे । गाँगली तेलन, लूनी चमारन का-कुण्ड में पड़े । वाचा, वाचा, ब्रह्मा की वाचा, विष्णु की वाचा, शिव-शङ्कर की वाचा, शब्द है साँचा, पिण्ड है काचा । गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति । चलो मन्त्र ! इसी वक्त । ॐ हूं फट् ।”
मन्त्रः— “ॐ काला भैरव काला बान । हाथ खप्पर लिए फिर मसान । मद्य मछली का भोजन करें सांचा भैरव हांकता चले । काली का लाड़ला । भूतों का व्यापारी । डाकिनी शाकिनी सौदागरी । झाड़-झटक, पटक-पछाड़ । सर खुला मुख बला । नहीं तो माता कालिका का दूध हराम । शब्द सांचा, पिंड कांचा । चलो भैरव । ईश्वरो वाचा ॥”
मन्त्रः—
“काला भैरों कपली
जटा । हत्थ वराड़ा, कुन्द
वडा । काला भैरों हाजिर
खड़ा । चाम की गुत्थी, लौंग
की विभूत ।
लगे लगाए की करे भस्मा भूत
। काली बिल्ली, लोहे
की पाखर, गुर सिखाए अढ़ाई
अखर । अढ़ाई अखर
गए गुराँ के
पास, गुराँ बुलाई
काली । काली का लगा चक्कर ।
भैरों का
लगा थप्पड़ ।
लगा – लगाया, भेजा-भेजाया,
सब गया सत समुद्र-पार
॥”
मन्त्रः— “भैरों उचके, भैरों कूदे । भैरों सोर मचावे । मेरा कहना ना करे, तो कालिका को पूत न कहावै । शब्द सांचा, फूरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ॥”
मन्त्रः— “ॐ काली कंकाली महाकाली के पुत्र, कंकाल भैरव ! हुकम हाजिर रहे, मेरा भेजा काल करे । मेरा भेजा रक्षा करे । आन बाँधू, बान बाँधू । चलते फिरते के औंसान बाँधू । दसों स्वर बाँधू । नौ नाड़ी बहत्तर कोठा बाँधू । फूल में भेजूँ, फूल में जाए । कोठे जीव पड़े, थर-थर काँपे । हल-हल हलै, गिर-गिर पड़ै । उठ-उठ भगे, बक-बक बकै । मेरा भेजा सवा घड़ी, सवा पहर, सवा दिन सवा माह, सवा बरस को बावला न करे तो माता काली की शैया पर पग धरै । वाचा चुके तो ऊमा सुखे । वाचा छोड़ कुवाच करे तो धोबी की नांद में, चमार के कूड़े में पड़े । मेरा भेजा बावला न करे, तो रूद्र के नेत्र से अग्नि की ज्वाला कढ़ै । सिर की लटा टूट भू में गिरै । माता पार्वती के चीर पर चोट पड़ै । बिना हुक्म नहीं मारता हो । काली के पुत्र, कंकाल भैरव ! फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा । सत्य नाम, आदेश गुरु को ॥”
मन्त्रः— “ॐ ह्रीं भैरव – भैरव भयकर-हर मां, रक्ष-रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॥”